भारतीय संविधान में आपातकालीन प्रावधान जर्मनी के संविधान से लिए गए हैं. भारत के संविधान में तीन प्रकार के आपातकालों का प्रावधान किया गया है. ये हैं;
भारत में आपातकाल के प्रकार (Types of Emergency in India)
(i) आर्टिकल 352 में राष्ट्रीय आपातकाल
(ii) आर्टिकल 356 में राज्य में आपातकाल (राष्ट्रपति शासन)
(iii) आर्टिकल अनुच्छेद 360 में देश में वित्तीय आपातकाल
आइये अब डिटेल में जानते हैं कि आखिर वित्तीय आपातकाल क्या होता है?
वित्तीय आपातकाल की घोषणा कब और किसके द्वारा की जाती है? (Who can declare Financial Emergency)
अनुच्छेद 360, राष्ट्रपति को वित्तीय आपातकाल की घोषणा करने का अधिकार देता है. यदि राष्ट्रपति संतुष्ट है कि देश में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसके कारण भारत की वित्तीय स्थिरता, भारत की साख या उसके क्षेत्र के किसी भी हिस्से को वित्तीय खतरा है, तो वह केंद्र की सलाह पर वित्तीय आपातकाल की घोषणा कर सकता है.
लेकिन यह ध्यान रहे कि 1978 के 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम में यह प्रावधान किया गया है कि राष्ट्रपति की ‘संतुष्टि’ न्यायिक समीक्षा से परे नहीं है, अर्थात सुप्रीम कोर्ट इसकी समीक्षा कर सकता है.
वित्तीय आपातकाल कैसे और कब तक के लिए लगाया जाता है (Parliamentary Approval and Duration of the Financial Emergency)
जिस दिन राष्ट्रपति, वित्तीय आपातकाल की घोषणा करता है उसके दो माह के अंदर ही इसको संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए. वित्तीय आपातकाल की घोषणा को मंजूरी देने वाले प्रस्ताव को संसद के किसी भी सदन द्वारा केवल एक साधारण बहुमत द्वारा पारित किया जा सकता है.
एक बार संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित किए जाने के बाद, वित्तीय आपातकाल अनिश्चित काल तक जारी रहता है, जब तक कि इसे राष्ट्रपति द्वारा हटाया नहीं जाता है. इसके दो प्रावधान है;
a. इसके संचालन के लिए कोई अधिकतम अवधि निर्धारित नहीं है; और b. इसकी निरंतरता के लिए बार-बार संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है.
वित्तीय आपातकाल की उद्घोषणा को राष्ट्रपति द्वारा बाद में किसी भी समय रद्द किया जा सकता है. इस तरह की उद्घोषणा को संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती है.
वित्तीय आपातकाल के प्रभाव (Effects of Financial Emergency)
1. वित्तीय आपातकाल के दौरान केंद्र के कार्यकारी अधिकार का विस्तार हो जाता है और वह किसी भी राज्य को अपने हिसाब से वित्तीय आदेश दे सकता है.
2. राज्य की विधायिका द्वारा पारित होने के बाद राष्ट्रपति के विचार के लिए आये सभी धन विधेयकों या अन्य वित्तीय बिलों को रिज़र्व रखा जा सकता है.
3. राज्य में नौकरी करने वाले सभी व्यक्तियों या वर्गों के वेतन और भत्ते में कमी की जा सकती है.
4. राष्ट्रपति, निम्न व्यक्तियों के वेतन एवं भत्तों में कमी करने का निर्देश जारी कर सकता है;
a. संघ की सेवा करने वाले सभी व्यक्तियों या किसी भी वर्ग के लोग
b. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश.
इस प्रकार, वित्तीय आपातकाल के संचालन के दौरान केंद्र; वित्तीय मामलों में राज्यों पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लेता है जो कि राज्य की वित्तीय संप्रभुता के लिए खतरे वाली स्थिति होती है.
इससे पहले भारत में 1991 गंभीर वित्तीय संकट उत्पन्न हुआ थ लेकिन फिर भी वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency) की घोषणा नहीं की गई थी. इसलिए इस समय भी सरकार को सोच समझकर फैसला लेना चाहिए हालाँकि किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पूरा देश एक साथ खड़ा है.
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